हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री

हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री ।

कैं कहुं काज किया संतन का ।
कैं कहुं गैल भुलावना ॥

कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी ।
लाग्यो है बिरह सतावना ॥

मीरा दासी दरसण प्यासी ।
हरि-चरणां चित लावना ॥
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