शरद पूणम की रात, गगन पर चन्दा मुसकाये।
सजे अनूपम साज, सांवरिया यमुना तट आये॥
मलयज सौरभ मझिडत पथ-पथ, फिरत समीर भुलाई।
जूहि मल्लिका रजनी गन्ध की, कण-कण बास समाई।
पंकज कोष खिले बिन तरणी, भंवरन भीर बढ़ाई।
कदली स्वर्ण लता उरझानी, मानो लेत बलाई।
बजी मुरलिका तान मधुर स्वर, कसक हृदय जाये ।
शरद पूणम की रात, गगन पर चन्दा मुसकाये ॥
एक एक को बिना बोलाये, सपदि चली बृज नारी ।
बालक छोड़ दिये, सुन्दर भरता की सेज बिसारी ।
श्रुति कौन रह सके दूर जब ब्रह्म पुचकारी |
बलिहारी बृज भाग्यशालनि पै बारी ।
धन्य धन्य इन बर नारिन के लियो ब्रह्म गर लाबे।
शरद पूणम की रात, गगन पर चन्दा मुसकाये॥
देव किन्नर गन्धर्व यक्षगण, वधु रहीं पछताये ।
शिव भोले कैलाश छोड़ कर, गोपी रूप धर आये।
इक इक गोपी बिच बिच माधो, मण्डल रास बनाये ।
आनन्द घन घट गर्ज गर्ज कर, प्रेम बूँद बरसाये ।
भई छ: मासी रैन चन्द्र, नभ मण्डल हरषाये।
शरद पूणम की रात, गगन पर चन्दा मुसकाये॥
मैं छिनाल बिसराई प्रीतम, ठाढ़ी हृदय विचारूँ।
खाय मरूँ विष गिरूँ कूप, अब कैसे जीवन धारूँ।
धीरज छूट चला है सजनी, किसको जाये पुकारूँ।
विषय बाढ़ में बही जात हूँ, सब पै हाथ पसारूँ।
हे प्राण वल्लभे 'हरि' कृपा बिन, कौन इसे अपनाये।
शरद पूणम की रात, गगन पर चन्दा मुसकाये॥