मिलि द्वै द्वै ह्वै गये चार यार।
पिय के गयो बंटाढार यार।
हौं गई धारहूँ धार यार।
दइ तन मन प्रानन हार यार।
गई पनघट सिर घट धार यार।
तहँ आयो नंद कुमार यार।
वाने कह सबहिं पुकार यार।
ब्रज पतिव्रता नहिं नार यार।
यदि हो, करि ले दृग चार यार।
हौं दउँ वा धर्म बिगार यार।
मोहिँ आयो क्रोध अपार यार।
हौं गइ करिवे दृग चार यार।
लखतहिं वाने दृग सैन मार।
रहि इकटक वाय निहार धार।
सुधि बुधि निज देह बिसार यार।
किरिकिरि सों परि गयो यार यार।
हौं जीती सो गयो हार यार।
झूठेहि कह इमि सब नार यार।
नहिं सका पतिव्रत टार यार।
मन कह पुनि लखु सोइ यार यार।
बुधि कह सुधि देह सँभार यार।
निज कर जनि जाँघ उघार यार।
अब पुनि जनि घूँघट टार यार।
घूँघट पट लखु यार यार।
पति आय तबै लठ मार यार।
तेहि लखि डरि दुरि गयो यार यार।
चली घर घट भर सिर धार यार।
जित देखूँ दीखत यार यार।
मग मिली सखी दुइ चार यार।
इक सखि दइ घूँघट टार यार।
कह कहुँ देखी का यार यार।
तनु काँपे बार बार।
नैनन बह अँसुवन धार यार।
तू डगमगात पग धरत यार।
हौं कह हौं पतिव्रत नार यार।
नहिं सक कोउ मम व्रत टार यार।
का तो पै जादू डार यार।
यह सुनि भाजी ब्रजनार यार।
पुनि पुनि आवति सुधि यार यार।
अब कैसे हो घर कार यार।
धनि तू 'कृपालु' धनि प्यार यार॥
पुस्तक : ब्रजरस माधुरी-2
कीर्तन संख्या : 112
पृष्ठ संख्या : 260
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