खड़ी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को
सोने का लोटैा गंगाजल पानी
बूंद बूंद गौरा चढ़ाए रही शिव को
ऊँ ऊँ कह के मनाए रही शिव को
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को
बागों से जाके गौरा फूल तोड लायी
गुंध गुंध माला चढ़ाय रही शिव को
ऊँ ऊँ कह के रिझाए रही शिव को
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को
बागों से जाके गौरा बेलपत्र लाई
राम नाम लिख के चढ़ाए रही शिव को
ऊँ ऊँ कह के रिझाए रही शिव को
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को
जंगल में जाके गौरा भांग तोड़ लाई
पीस पीस भंगिया पिलाए रहीं शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को