आया हु जग से हार मुझको अपनाले
मेरी हार को कर स्वीकार मुझको अपनाले
दर तेरा आखरी है दुनिया बताती है
बिगड़ी से बिगड़ी किस्मत यहां बन जाती है
सच्ची है तेरी सरकार मुझको अपना ले
संकटों में उलझा मेरा हर एक रिश्ता है
इससे उबारने का तू ही एक फरिस्ता है
संकट मूझपे है हजार मुझको अपना ले
कोई कहे साथी माझी कोई दीनानाथ है
श्याम कहे बाबा मेरे कोई न साथ है
देकर थोड़ा सा प्यार मुझको अपना ले
लेखक श्याम अग्रवाल जी