मोरी राधा गयी किस और सखी री,
मोरी राधा गयी किस ऒर सखी री,
मैं ढूँढू उसे चहुँ ओर सखी री.....
मोरी मुरलिया राग न छेड़े,
हिय नहीं उठत हिलोर सखी री,
मोरी राधा गयी किस ऒर सखी री....
राधा बिन मोरा बैभव सूना,
अब चाह नहीं कुछ और सखी री,
मोरी राधा गयी किस ऒर सखी री.....
मन विह्वल ढूंढे उसे बाहर,
जब राधा बसत मन मोर सखी री,
मोरी राधा गयी किस ऒर सखी री,
मैं ढूँढू उसे चहुँ ओर सखी री........
रचना: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी