रूप गोपी का सूंदर सजा के चले है भोले रास देखने,
मुखड़ा घुंगट में अपना छिपा के चले है भपा रास देखने,
हार नो लाख पहने गले में,
कानो में डोले रे डोले झुमका,
होश उड़े है तीनो लोक के भोले लगाए जब धूमका,
माथे पे बिंदियां कानो में कजरा रत्न रे नैनो में काला कजरा,
लाल होठों पे लाली लगा के चले है बाबा रास देखने,
देख भोले को गौरी मैया रोक हसी ना पाए,
जैसे दुल्हन शर्माती है वैसे ही भोले शर्माए,
छन छन बोले पाँव की पायल करती नैथनिया दिल को पागल,
लाल हाथो में मेंहदी रचा के चले है बाबा रास देखने,
फिर पहुंचे वृद्धावन में भोले देख रहे थे कन्हाई,
पूछे सखी से ओढ़ के घूंघट गोपी कौन आई,
जैसे ही मोहन मुरली बजाई सुध भूद भोले ने विश्राई,
तन पे सोला शृंगार सजाके चले है बाबा रास देखने,
गिर गए भोले विच सखियों के सिर को खड़े है झुकाये,
इस लीला के कारण बाबा गोपेश्वर कहलाये,
बन जाए उसके दर का दीवाना गए ले तू वेधक् दिल से तराना,
धनाये लखा हुआ गन गए के चले है भोले रास देख ने,
मुखड़ा घुंगट में अपना छिपा के चले है भपा रास देखने,