उलझनों की ये सुलझे लड़ी
तू राम भजले, ओ श्याम भजले
तू नाम भजले घड़ी दो घड़ी"
नाम सुमिरन का धन साथ देगा,
जगकी माया क्या कब रूठ जाए।
एक पल का भरोसा नहीं है,
सांसों का तार ना कब टूट जाए।
जिन्दगी मौत के दर खड़ी
तू राम भजले, ओ श्याम भजले,
तू नाम भजले घड़ी दो घड़ी।।
उलझनों की ये सुलझे लड़ी....
साफ दिखेगी सूरत प्रभु की,
मन के दर्पण का तुम मैल धो लो।
ओ सबके दिल गंगा जल से लगेगे,
अपने मन की कपट गाँठ खोलो।
छोड़कर सारी धोखाधड़ी,
तू राम भजले, ओ श्याम भजले,
तू नाम भजले घड़ी दो घड़ी,
उलझनों की ये सुलझे लड़ी....
सौप प्रभु पे सकल उलझनें तू,
ग्रस्त चिंता में क्यों तेरा मन है।
संपदा, सुख, सुयश देने वाला,
एक यहीं तो हरी का भजन है।
तू नाम जपले ये दौलत बड़ी
तू राम भजले, ओ श्याम भजले,
तू नाम भजले घड़ी दो घड़ी।।
उलझनों की ये सुलझे लड़ी....
राजेश कुमार जिंदल "बंटी", इन्दौर