भूत प्रेत की टोली लेकर मस्त मलंगा होकर,
ढोल मसान की राख लपेटे नाचे भोला औह्गड़,
भूत प्रेत की टोली लेकर मस्त मलंगा होकर,
थर थर धरती काँपे गूंजे भूतो की किलकारी,
१२ वाजे रात के देखो सो गई दुनिया सारी,
खोल जटाए तांडव करते भूतो जैसा वेस,
तब भी करनी लागे इसे रूप जो ले थे,
झूम रही भूतो की टोली मैं केलाशी शंकर,
ढोल मसान की राख लपेटे नाचे भोला औह्गड़,
हाथ सुल्फा ओखड भोला जोर जोर से खीचे,
मस्त मलंगा बन भूतो की टोली बीच में बेठे,
खेल रहे है सर्प विशेलो से ये डमरू धारी,
डम डम डमरू वाले डमरू से निकले चिंगारी,
भूल गए दुनिया सारी इस मस्ती में ये खो कर,
ढोल मसान की राख लपेटे नाचे भोला औह्गड़....
हाथ में ले त्रिशूल नचाये अद्भुत ओखड बाबा,
देख के रूप अनोखा भोले का भूतो को मजा आता,
नाच रहा कोई बिना बात के बिन मुंडी के नाचे,
बिन हाथो के धडक धडक के देखो ढोलक बजे,
शर्मा नमन करे भोले को हम सब तेरे है नौकर,
ढोल मसान की राख लपेटे नाचे भोला औह्गड़,