शाम सवेरे नयन बिछाकर,
राह तकू मैं मोहन की,
ना जाने अब कब चमके गई,
किस्मत रे इस जोगन की,
शाम सवेरे नयन बिछाकर
प्रीत की ऐसी अगन चला के मुझको को एकेला छोड़ गये.
जन्म जन्म का प्रेम का बंधन एक पल में ही तोड़ गये,
बिरहँ की आखियो से बरसे बिन स्वान रुत सावन की,
शाम सवेरे नयन बिछाकर....
घर घर मेरी प्रीत की चर्चा घर घर मेरे प्रेम की बाते,
दुनिया की अब परवाह नहीं है सँवारे जब तू है अब मेरे साथ,
पंख बिना ही उड़ जाती है बात दिलो के बंधन की,
शाम सवेरे नयन बिछाकर......
हाल हुआ क्या तुम बिन मोहन खोई खोई रहती हु,
सखियाँ सारी पूछे मुझसे चुप चुप क्यों रहती हु,
ऐसा जादू डाल गये हो सूद बिसराई तन मन की,
शाम सवेरे नयन बिछाकर........