छवि देखि अजब हमने

छवि देखि अजब हमने मदन मोहन मुरारी की
है उसका चाँद सा मुखड़ा नजर तिरशी कटारी सी,

बड़े नैना है मत वाले है सिर पे केश घुंगराले,
हो जैसे छाए अम्बर में कही पे मेघ हो काले
बसी नैनो में सूरतियाँ उसी बांके बिहारी की,
है उसका चाँद सा मुखड़ा नजर तिरशी कटारी सी,
छवि देखि अजब हमने मदन मोहन मुरारी की

मुकट हो मोर माथे पे है कंगन हाथ में साजे,
पीताम्भर है कमरिया में पायलियाँ पाओ में साजे,
नुरानी रूप है पाया निगाहों में खुमारी सी,
है उसका चाँद सा मुखड़ा नजर तिरशी कटारी सी,
छवि देखि अजब हमने मदन मोहन मुरारी की

नशीले कान में कुंडन मधुर मुरली बजाते है,
फिजाये झूम उठती है जब वो मुस्कुराते है ,
वसाई मन में केवल में छवि वो प्यारी प्यारी सी,
है उसका चाँद सा मुखड़ा नजर तिरशी कटारी सी,
छवि देखि अजब हमने मदन मोहन मुरारी की
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