वड्डा तेरा दरबार, सच्चा तुध तख़्त, श्री साहा बादशाह हो, लेह चल चौर छत।
अत ऊँचा ताका दरबारा,
अंत नही किछ पारावारा,
कोटि-कोटि-कोटि लख धावे,
इक तिल ता का महल ना पावै,
अंत नही किछ पारावारा,
अत ऊँचा ता का दरबारा,
सुहावी कौन कऊड़ सुवेला,
जित प्रभ मेला,
लाख भगत जा कौ अराध्ये,
लाख तपिसर तप ही साधे हैं,
लाख जोगिसर करते जोगा,
लाख भोगिसर भोगहे भोगा,
अंत नही किछ पारावारा,
अत ऊँचा ता का दरबारा,
घट-घट वसै, जानहे थोड़ा,
है कोई साजन पर्दा तोरा,
करौ जतन जो होए मेहरबाना,
ता कौ देइ जिउ कुरबाना,
अंत नही किछ पारावारा,
अत ऊँचा ता का दरबारा,
फिरत-फिरत संतन पै आया,
दुख-भ्रम हमारा, सगल मिटाया,
महल बुलाया प्रभ अमृत भुंचा,
कहो नानक प्रभ मेरा ऊँचा,
अंत नही किछ पारावारा,
अत ऊँचा ता का दरबारा,
सौरभ सोनी
सरिया, गिरिडीह
झारखंड, 825320
825320