सुबह साँझ की वेला है सुख दुःख की कहानी है,
ज़िंदगी ये तो कुछ भी नहीं ये तो आणि जानी है,
सुबह साँझ की बेला है...
माया ने मारा है ममता ने वसाया है,
तृष्णा की डगर पर तो कर्मो ने गेरा है,
बंधन को हटा कर के हमे मुकति पानी है,
ज़िंदगी ये तो कुछ भी नहीं ये तो आणि जानी है....
कई ठोकरे खानी है फिर भी न संभाला है,
प्यार के चकर में कई गोहते लगाए है,
इस भवर से छूठन को सत्पथ को तो पाना है,
ज़िंदगी ये तो कुछ भी नहीं ये तो आणि जानी है,
कुछ राग में खोना है,
कुछ देश में खोना है,
ऋषियों को आंधी में सब कुछ ही गवाया है,
अज्ञान हटा कर के इक ज्योति जगानी है,
ज़िंदगी ये तो कुछ भी नहीं ये तो आणि जानी है,
जीवन के मदरे जो सत्कर्म कमाओ,
बस मरने से पहले भी कुछ कर्म कमा जाऊ,
कहते है वेद सभी हर चीज अभिमानी है,
ज़िंदगी ये तो कुछ भी नहीं ये तो आणि जानी है,