दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो,
तेरे दर पे आ गिरा हूँ, मुझको ज़रा संभालो.....-2
कल थे जो मेरे अपने, सब हो गए पराए,
मुश्किल की इस घड़ी में, कोई ना काम आए,
अपना मुझे बना कर, दुनिया को ये बता दो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो,
तेरे दर पे आ गिरा हूँ, मुझको ज़रा संभालो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो॥
कश्ती भँवर में मेरी, सूझे नहीं किनारा,
कोशिश तमाम कर ली, मिलता नहीं सहारा,
मैं पुकार कर रहा हूँ, आकर मुझे निकालो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो,
तेरे दर पे आ गिरा हूँ, मुझको ज़रा संभालो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो॥
तेरे दर का मैं भिखारी, बन करके अब रहूँगा,
तेरे चरणों में ‘अमित’ अपने, ये प्राण त्याग देगा,
मेरा हाथ अब पकड़ कर, मुझे हृदय से लग लो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो,
तेरे दर पे आ गिरा हूँ, मुझको ज़रा संभालो,
दीनों के हो दयालु, थोड़ी सी दया करदो॥