मेरे प्राणेश मन मोहन तुम्हे ढूँढू कहाँ जाकर,
बड़ा बेचैन हूँ तुम बिन जरा देखो मुझे आकर,
मेरे प्राणेश मनमोहन तुम्हे ढूँढू कहाँ जाकर
तुम्हारी याद आते ही,झड़ी आंसू की लग जाती,
तू फिर फिर दिल में आता है की मर जाऊँ जहर खाकर,
मेरे प्राणेश मनमोहन.......
छिपे हो तुम कहाँ जाकर ना आते हो बुलाने से,
मजा क्या तुमको आता है,मुझे इस तौर तड़पा कर,
मेरे प्राणेश मनमोहन......
ना भूलूंगा कभी उपकार अपने उस हितैषी का,
जो करवा दे मुझे दर्शन कन्हैया को यहां लाकर,
मेरे प्राणेश मनमोहन.......
प्रार्थना ‘राम’ की तुमसे यही कर जोड़ विनती है,
प्रार्थना ‘राम’ की तुमसे,
यही कर जोड़ विनती है,
लिपट जाऊँ तुम्ही से मैं तुम्हे आनंद घन पाकर,
मेरे प्राणेश मनमोहन.......