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शरण माँ की आजा

दर दर क्यों भटक रहा है तू,
इक बार शरण माँ की आजा,
जगदम्बे के दरबार का है,
खुला सबके लिए ही दरवाजा,
उसकी बिगड़ी यहाँ पल में बनी,
जो माँ की शरण में आया,
और मईया का जयकारा लगाया।।
हुए उनके दूर सभी दर्द और गम,
जिसने शीश झुकाया,
और मईया का जयकारा लगाया।।

आदि शक्ति सवरूपा,
है माँ जग कल्याणी,
सदा भलाई माँ करे,
इसकी कृपा अभिरानी,
जिसने मईया को याद किया,
माँ ने उसको आवाद किया,
छाए ना कभी दुःख के बादल,
जिसने है ध्यान लगाया,
और मईया का जयकारा लगाया।।
हुए उनके दूर सभी दर्द और गम,
जिसने शीश झुकाया,
और मईया का जयकारा लगाया।।

जो भी दरबार में आया है,
उसका माँ ने उद्धार किया,
खुशियां उसने माँ से पाई,
हां माँ ने ही भव पार किया,
तेरी अरदास सुनेगी माँ,
नहीं आने में तू देर लगा,
दरबार बड़ा ये साँचा है,
हुआ सबका भला,
मिले सुख सारे, जिसने मन को,
माँ का मंदिर है बनाया,
और मईया का जयकारा लगाया।।

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