छोड़ के मस्ती वो पर्वत पे रहे लगा कर आसान है,
फिर भी तीनो लोक में चलता शिव भोले का शासन है,
जय हो जय हो जय हो मेरा भोला भंडारी,
औग्दानी महादेव का कैसा रूप निराला है,
गले में सर्पो की माला है तन पे इक मिरग शाला है,
खुद रहता है फकर बन के देता सब को अन धन है,
फिर भी तीनो लोक में चलता शिव भोले का शाशन है,
जय हो जय हो जय हो मेरा भोला भंडारी,
जटा से बहती है गंगा मस्तक चन्दर विराजे है,
दसो दिशाए गूंज उठे जब शिव का डमरू भाजे है,
नैनो से ज्वाला बरसे पर फूलो सा कोमल मल है
फिर भी तीनो लोक में चलता शिव भोले का शाशन है,
जय हो जय हो जय हो मेरा भोला भंडारी,
श्रद्धा और विश्वाश से जो भी इनका ध्यान लगाते है,
ये देवो के देव सदा उन पर किरपा बरसाते है,
शिव किरपालु के चरणो मे दास का तन मन अर्पण है,
फिर भी तीनो लोक में चलता शिव भोले का शाशन है,
जय हो जय हो जय हो मेरा भोला भंडारी,