चलना है दूर मुसाफिर,काहे सोवे रे,
काहे सोवे रे..मुसाफिर! काहे सोवे रे,
चेत-अचेत नर सोच बावरे,
बहुत नींद मत सोवे रे,
काम-क्रोध-मद-लोभ में फंसकर
उमरिया काहे खोवे रे,
चलना है दूर मुसाफिर,काहे सोवे रे |
सिर पर माया मोह की गठरी,
संग दूत तेरे होवे रे,
सो गठरी तोरी बीच में छिन गई,
मूंड पकड़ कहाँ रोवे रे,
चलना है दूर मुसाफिर,काहे सोवे रे |
रस्ता तो दूर कठिन है,
चल अब अकेला होवे रे,
संग साथ तेरे कोई ना चलेगा,
काके डगरिया जोवे रे,
चलना है दूर मुसाफिर,काहे सोवे रे |
नदिया गहरी,नांव पुरानी,
केही विधि पार तू होवे रे,
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
ब्याज धो के मूल मत खोवे रे,
चलना है दूर मुसाफिर,काहे सोवे रे |
रचयिता - कबीर दास