गांव में ये दादी रहती है

बिरमित्रा पूरी है उत्क्ल का गांव गांव में ये दादी रहती है

अटल सिंगासन बैठी मियां शोभा न्यारी है,
चटक चुनरी लाल सुरंगी मेहँदी प्यारी है,
अपने आंचल से करती है सब भगतो पे छाव,
बिरमित्रा पूरी है उत्क्ल का गांव गांव में ये दादी रहती है

तिरसूल रूप में ढटके बैठी नारायणी है नाम,
सारे जग में गूंज रहा है साँचा तेरा दाम ,
उसको उतना देती दादी जिसके जितने भाव,
बिरमित्रा पूरी है उत्क्ल का गांव गांव में ये दादी रहती है
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