मोहन है मेरा और मैं हूँ घनश्याम की,
बिना गिरधर के ये जान किस काम की ,
मोहन है मेरा और मैं हूँ घनश्याम की
सुबह शाम दिन रात मोहन तेरे नाम की माला भाजू मैं,
पद में घुंगरू बाँध लिए और झूम झूम के नाचू मैं,
छा गई मस्ती एसी तेरी मुरली की तान की,
मोहन है मेरा और मैं हूँ घनश्याम की
मूरत श्याम सलोने तेरी मेरे मन पे छाई है,
तेरे सिवा कुछ और मुझे अब देता नही दिखाई है,
नैनो में देखि है तेरे महिमा चारो धाम की,
मोहन है मेरा और मैं हूँ घनश्याम की
भक्ति तेरी पा गई मैं और सब कुछ पीछे छोड़ दियां,
देश गाव और जग वालो से कब का नाता तोड़ लियां,
जग हो वैरी हो जाए दीवानी तेरे नाम की ,
मोहन है मेरा और मैं हूँ घनश्याम की