ईस जग मे मानव तन

इस जग मे मानव तन,मुश्किल से मिलता है।
हरी का तु भजन करले,ये समय निकलता है।

मानव तन हीरा है,गफ़लत मे मत खोना।
बिन भजन के ओ प्राणी,रह जाएगा रोना।
इस तन का भरोसा क्या,हर पल ये बदलता है•

छल कपट द्वेष निन्दा,चोरी जो करते है।
ये समझलो वो बन्दे,जीते ना मरते है।
अपने हाथो विष का,वो प्याला पीता है•

विरथा जीवन उनका,जो शुभ कर्म नही करते।
खाने पीने मे तो,पशु भी पेट भरते।
पापी प्राणी जग मे,बिन आग के जलता है •

सदानन्द कहता,जीवन को सफल करलो।
गुरू चरणो मे रहकर,हरि सुमिरन करलो।
हरि दर्शन करने को,दिल ये मचलता है•

लेखक:-स्वामी सदानन्द जोधपुर
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