इक तू ही अनमोल मालिक इक तू ही अनमोल,
मैंने इस दुनिया में आके बहुत किये है गुनाह,
इक तू ही अनमोल मालिक इक तू ही अनमोल,
विशे विकारो में लीं रहा कभी दिल को नाम न भाया,
मैंने अपनी तन की चदरिया पर खुद ये दाग लगाया,
नहीं की मैंने तेरी बंदगी तेरा किया मखौल,
इक तू ही अनमोल मालिक इक तू ही अनमोल,
तन की बौछारे सिर पे पड़ी मुँह मोड़ लिया अपनों ने
मौत के मुँह में तोड़ गए दिल तोड़ दिया अपनों ने,
बुरे वक़्त ने मेरे मुँह पे कस के मारा धो,
इक तू ही अनमोल मालिक इक तू ही अनमोल,
इस गुनहाओ के पुतले को शरण तुम्हारी देदो ,
चढ़ी रहे हर वक़्त मालिक ऐसी खुमारी देदो,
इस जालिम दुनिया ने मालिक दिया कलेजा
भाई बहिन और बीबी बचे है मतलब के सारे ,
तोड़ ते रिश्ता बुरे वक़्त में ऐसे यारे न्यारे,
केहता नसीब भी भानी इसको अपने दिल में टटोल,
इक तू ही अनमोल मालिक इक तू ही अनमोल,