कैसी बजाई तूने बांसुरी नीन्दियाँ न आई सारी रात मोहे,
हरे बांस की बांसुरियां ने मन मेरो हर लीनो,
सुध बुध भूली तान और मन की ऐसो जादू कीनो,
ओह री गुजरियां बरसाने की,
कोई सुने न मेरी बात सजनी,
नीन्दियाँ ना आई सारी रात,
कैसी बजाई तूने बांसुरी नीन्दियाँ न आई सारी रात मोहे,
जल भरने मै यमुना के तट इक दिन गई अकेली.
मार्ग मैं मिल गयो नंदलाला किन्ही बहुत ठिठोली,
मार लकुट मोरी गागर फ्होड़ी,
कीन्हो बहुत उत्त्पत सजनी,
नीन्दियाँ ना आई सारी रात,
कैसी बजाई तूने बांसुरी नीन्दियाँ न आई सारी रात मोहे,
मार लकुट मोरी गागर फ्होडी,
किहनो बहुत मोरी गागर फ्होड़ी,
कीन्हो बहुत उत्थ्पत सजनी,
नीन्दियाँ ना आई सारी रात,
कैसी बजाई तूने बांसुरी नीन्दियाँ न आई सारी रात मोहे,
बैठ कदम्ब की डाल कन्हियाँ मुरली मधुर बजावे,
ब्रिज गोपीन के घर मैं कान्हा चोर चोरी दही खावे
देख सूरतियाँ मनमोहन की मुख से न बोलो जात सजनी
नीन्दियाँ ना आई सारी रात,
कैसी बजाई तूने बांसुरी नीन्दियाँ न आई सारी रात मोहे,
Aashish Kaushik
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