क्यो गरब करे मन मूरख तु,जग छोङ के एक दिन जाना है,
करले कुछ सुकृत जीवन मे,ये दुनिया मुसाफिर खाना है,
पांच तत्व का बना पींजरा,जिसमे एक पंछी बेठा ,
हरदम लग रहा आना जाना,कभी किसी ने नही देखा ,
इस तन को मल-मल कर धोया,साबुन ओर तेल लगाकर के,
पर मन का मेल नही धोया कभी,राम का नाम जंपा कर के,
पत्थर चुनकर महल बनाया,दो दिन का ठोर ठिकाना है,
उठ जाएगी डोली तेरी,आखिर शमसान ठीकाना है ,
शुभ कर्म करे तो चमन खिले,वरना जीवन वीराना है,
कहे सदानन्द दुनियां वालो,फिर आखिर मे पछताना है
रचनाकार:-स्वामी सदानन्द जोधपुर
M.9460282429