पीहर ना जाओ गौरा तेरा मेरा निरादर है
गौरा तेरे बाबुल ने यज्ञ रचाया है
सब को निमंत्रण दिया नहीं हमको बुलाया है
पीहर ना जाओ गोरा
बेटी घर बाबुल के बिन बुलाए चली जाती है
गोरा ने नहीं माना पीहर चली जाती है
पीहर ना जाओ गौरा
माता तो हंस बोली पिता मुख से नहीं बोले
छोटी बहना ने कटु वचन सुनाए हैं
पीहर न जाओ गौरा
गौरा ने जब देखा कहीं भोले का आसन नहीं
यग्य हो रहा.था गौरा बाई में कूद पड़ी
पीहर न जाओ गौरा
शंकर जो सुन पाए वीरभद्र को भेजा है
यज्ञ विध्वंश किया राजा दक्ष को मारा है
पीहर न जाओ गौरा तेरा मेरा निरादर है