दीनबन्धु दीनानाथ, मेरी तन हेरिये
भाई नाहिं, बन्धु नाहिं, कटुम-परिवार नाहिं
ऐसा कोई मीत नाहिं, जाके ढिंग जाइये
खेती नाहिं, बारी नाहिं, बनिज ब्योपार नाहिं
ऐसो कोउ साहु नाहिं जासों कछू माँगिये
कहत मलूकदास छोड़ि दे पराई आस,
राम धनी पाइकै अब काकी सरन जाइये