प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी,
शीश पर खड़ाऊँ, अँखिओं में पानी
शीश खड़ाऊ ले चला ऐसे,
राम सिया जी संग हो जैसे
अब इनकी छाव में रहेगी राजधानी,
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
पल छीन लागे सदिओं जैसे,
चौदह वरष कटेंगे कैसे
जाने समय क्या खेल रचेगा,
कौन मरेगा कौन बचेगा
कब रे मिलन के फूल खिलेंगे,
नदिया के दो फूल मिलेनेगे
जी करता है यही बस जाए,
हिल मिल चौदह वरष बिताएं
राम बिन कठिन है इक घडी बितानी,
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
तन मन बचन, उमनग अनुरागा,
धीर धुरंधर धीरज त्यागा
भावना में बह चले धीर वीर ज्ञानी,