बड़े दिन हुए बिछड़े सखा से ए द्वारपालो मिलने दो
नहीं देखा है बरसों से उसको तनिक मुझे तक लेने दो
यह जो द्वारकाधीश तिहारे हैं बचपन के मित्र हमारे हैं
संग खेले पढ़े गुरुकुल में गले जाके लगने दो
बड़े दिन हुए ,,,,,,
द्वार पर एक निर्धन आया है पाव नंगे है ऊघडी काया है
शीश पगड़ी ना झगा उसके तन पे कहे है तुमसे मिलने को
बड़े दिन हुए ,,,,,,
नाम अपना सुदामा बताता है नीर आंखों में भर भर लाता है
कहता है मैं सखा श्याम का हूँ महल में जाने दो
बड़े दिन हुए ,,,,,,