दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई

दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई,
सारी दुनिया तर्स्त है जिस से जनता है गबराई,
जगत के मालिक जगत वियाता अर्ज है तुमसे करते,
देर करो न अब तुम स्वामी निकट घडी है आई
दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई,

रोटी के भी लाले पड़ गे दुखी है सब नर नारी,
काम भी छूटा धाम भी छूटा कहा जाए त्रिपुरारी,
बीच भवर में डूभ रहे सब कहा नाव ठहराई,
दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई,

कला कार हम किसे सुनाये अपनी मन की गाथा,
इस वेला में भी तो भगवान काम कोई न आता,
मकड़ जाल में फसे हुए सब कौन करे सुनवाई,
दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई,

क्या महामारी है भगवान इस से हमे बचाओ,
बुल चूक सब छमा करो तुम फिर से खुशिया लाओ,
कान पकड़ कर नाक रगड़ ते छोड़ रहे चतुराई,
दया करो हे नाथ जगत पे कैसी विपता आई,
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