मैंने आंगन नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान,
चंचल मन को नहीं संभाला कैसे आएंगे भगवान,
मैंने आंगन नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान....
हर कोने में मशक शाह की लगी हुई है ढेरी,
नहीं ज्ञान की किरण कहीं भी हर कोठरी अंधेरी,
आंगन चौबारा अंधियारा कैसे आएंगे भगवान,
मैंने आंगन नहीं बुहारा....
हृदय तुम्हारा पिघल ना पाया जब देखा दुखीहारा,
किसी पंथ भोले ने तुमसे पाया नहीं सहारा,
सुखी है करुणा की धारा कैसे आएंगे भगवान,
मैंने आंगन नहीं बुहारा....
अंतर के पट खोल देख लो ईश्वर पास मिलेगा,
हर प्राणी में ही परमेश्वर का आवास मिलेगा,
सच्चे मन से नहीं पुकारा कैसे आएंगे भगवान,
मैंने आंगन नहीं बुहारा....
निर्मल मन हो तो रघुनायक शबरी के घर आते,
सूर श्याम की बांह पकड़कर साग विदुर घर खाते,
इस पर हमने नहीं बिचारा इस पर तुमने नहीं बिचारा,
मैंने आंगन नहीं बुहारा....