उठ कै देइ ए बरोड़ गुजरी ,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ,
खर्चेगी लाख-करोड़ गुजरी, ए वेला तेरे हथ नहीं आउना |
काहे दी मटकी, काहे दी मधानी,
काहे दी लाइ ए डोर गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
तन दी मटकी, मन दी मधानी,
सूरत-शब्द की ये डोर गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
सत्संग दा तू जाग लगाईं लै,
जे तैनू वाखन दी लोड़ गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
एसा दिया जो तू देइ कर बरोड़ी,
माखन लेंगी बरोड़ गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
नाम अमिरस चाखन चाहे,
मन विषया कोड़ो मोड़ गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,
गुर चरना चित जोड़ गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।
उठ कै देइ ए बरोड़ गुजरी,
ए वेला तेरे हथ नहीं आउना,
खर्चेगी लाख-करोड़ गुजरी, ए वेला तेरे हथ नहीं आउना ।