जैसो चटक मटक मेरो कान्हा:
जैसो चटक मटक मेरो कान्हा,
वैसो ठाकुर दूजो नाहिं,
बलशाली असुरन सँघार्यो,
नाग कालिया पटक पछार्यो,
गोवर्धन अंगुरी पे धार्यो,
महिमा अपरंपार तबहुँ ये,
ग्वालन संग पिट जाय,
जैसो चटक मटक------।।
गर्व इंद्र को भंग करायो,
ब्रह्म मोह को दूर भगायो,
शिव जी ब्रज में दरसन पायो,
आदि अनंत अबिनाशी तबहुँ ये,
मधुबन धेनु चराय,
जैसो चटक मटक-----।।
काम कोटि शत् रूप लजायो,
ब्रज गोपिन संग रास रचायो,
लहरी जमुन तट धूम मचायो,
ऐसो छैल छबिलो तबहुँ ये,
माखन पे बिक जाय,
जैसो चटक मटक-------।।
रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी