घबरा के दिल में मना कर दीनदयाल चल दिया,
रख के छाज में देखो अपना लाल चल दिया,
वासुदेव बिचारा कर्मों का मारा.....
डर डर के पांव रखता था अंधियारी रात में,
थरथर कांपे थी काया आंधी और बरसात में,
बेचैन सा होकर रात में करता ख्याल चल दिया,
रख के छाज में देखो अपना लाल चल दिया,
वासुदेव बिचारा कर्मों का मारा.....
मिल जाए ना कोई राह में मन में था घबराया,
चलता चलता बेचारा यमुना के तट पर आया,
जल ही जल में फिर तो वह मझधार चल दिया,
रख के छाज में देखो अपना लाल चल दिया,
वासुदेव बिचारा कर्मों का मारा.....
पहुंचा ही था बीच धार में जल एकदम चढ़ आया,
सीने से ऊपर देख जल वसुदेव घबराया,
लटकाया पैर हरी ने जल फिर ढाल चल दिया,
रख के छाज में देखो अपना लाल चल दिया,
वासुदेव बिचारा कर्मों का मारा.....
यमुना पार करके पहुंचा गोकुल के गांव में,
जहां नंद बाबा रहते थे हरि तेरी इंतजार में,
लेटा कर हरि को वहां पर माया के साथ चल दिया,
रख के छाज में देखो अपना लाल चल दिया,
वासुदेव बिचारा कर्मों का मारा.....