हरी न रूणीचो बसायो
प्रभु न रुणीचो बसायो
द्वारिका से आय
पगा उभाणा गया तिरथां अन्न रति नहीं खायो
जाय द्वारका म डेरा दिनया
प्रभु जी के आगे बे तो रुदन मचायो रे
द्वारिका से आय...
हाथ जोड़ अजमलजी बोल्या के मै पाप कमायो
एक पुत्र जन्मे नहीं मेरे
बैठ चरणा माहि बाँके नीर बहायो रे
द्वारिका से आय...
इतनी कह बड्या समुन्द्र मे सिंघासन थर रायो
जद मालिक ने दया उपजी
भाग्यो ही दोड्यो सांवरो पलका मे आयो रे
द्वारिका से आय...
रतनागर म नीर घणों है ठाकुर जी समझावे
तेरे माथे ऊपर के जल फिरज्यागो
हटज्या भगत रामा, हटजा हटायो रे
द्वारिका से आय...
अजमल जी केणो नहीं माने, आगो आगो ध्यायो
जद मालिक न दया उपजी
चतुर्भुज रूप साँवरो पल मे दिखायो रे
द्वारिका से आय...
भगत जाण के कारज सारया वचना को बांध्याो आयो
अजमल जी का जनम सुधारया
इसरदास अरठ रामा भजन बनायो रे
द्वारिका से आय...