सजा दो घर को गुलशन सा

सजा दो घर को गुलशन सा मेरे सरकार आये है
लगे कुटिया भी दुल्हन सी
मेरे सरकार आये है

पखारो इन के चरणों को बहा कर प्रेम की गंगा,
बिछा दो अपनी पलकों को मेरे सरकार आये है
सजा दो घर को गुलशन सा अवध में राम आये हैं

सरकार आ गए है मेरे गरीब खाने में
आया दिल को सकूं उनके करीब आने में,
मुदत से प्यासी अखियो को मिला आज वो सागर
भटका था जिसको पाने की खातिर आज जमाने में

उमड़ आई मेरी आंखे देख कर अपने बाबा को
हुई रोशन मेरी गलियां मेरे सरकार आये है
सजा दो घर को गुलशन सा अवध में राम आये हैं

तुम आ कार भी नही जाना
मेरी इस सुनी दुनिया से,
कहू हर दम यही सब से मेरे सरकार आये है,
सजा दो घर को गुलशन सा अवध में राम आये हैं
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