आदि योगी

दूर उस, आकाश की, गहराइयों में,,,
इक नदी से, बह रहे हैं, आदि योगी l
शून्य सन्नाटे, टपकते जा रहे हैं,,,
मौन से, सब कह रहे हैं, आदि योगी l
योग के इस, स्पर्श से अब,
योगमय, करना है तन मन,,,

सांस शाश्वत, सनन सननन,
प्राण गुंजन, धनन धननन l
उतरें मुझ में, आदि योगी l
योग धारा, छलक छन्न छन्न l
सांस शाश्वत, सनन सननन l
प्राण गुंजन, धनन धननन l
उतरें मुझ में, आदि योगी ll

पीस दो, अस्तित्व मेरा,
और कर दो, चूरा चूरा l
पूर्ण होने, दो मुझे और,
होने दो अब, पूरा पूरा l

भस्म वाली, रस्म कर दो, आदि योगी l
योग उत्सव, रंग भर दो, आदि योगी l
बज उठे ये, मन सितारी,
झनन, झननन, झनन, झननन l
"सांस शाश्वत, सनन सननन,
प्राण गुंजन, धनन धननन" ll

उतरें मुझ में, आदि योगी l
योग धारा, छलक छन्न छन्न,
सांस शाश्वत, सनन सननन,
प्राण गुंजन, धनन धननन l
उतरें मुझ में, आदि योगी ll
अपलोडर- अनिलरामूर्तिभोपाल
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