लम्बोर धाम में जो भी माँ का दर्शन करने आते हैं
चरणों में शीश झुका के माँ का आशीष पाते हैं
मंगल गाये माँ को रिझाये महिमा है इनकी बड़ी
संकट हो या कष्ट सताए रहती है हर दम कड़ी
माँ की गड़ो में बैठ के सारे जीवन का सुख पाते हैं
चरणों में शीश झुका के माँ का आशीष पाते हैं
नवरात्र आया माँ ने लगाया दरबार अपना यहाँ
नर नारी परिवार भी आया मेला सा लगता यहाँ
जात जडूला करने दर पर दूर दोर्र से आते हैं
चरणों में शीश झुका के माँ का आशीष पाते हैं
डगमग डोले जिनकी नैया माँ का धयान लगाए
बांके मैया पल में खिवैया भव से पार लगाए
मन मंदिर में माँ की मूरत प्रेम से सारे सजाते हैं
चरणों में शीश झुका के माँ का आशीष पाते हैं
मनसा माता सा ना दाता विश्वास जो ये करे
खाली कोई दर से ना जाता पल में ये झोली भरे
बिट्टू ये सुनती है दिल की दिल से जो फरमाते हैं
चरणों में शीश झुका के माँ का आशीष पाते हैं