जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै
जिन जागा तिन मानिक पाया
तैं बौरी सब सोय गँवाया
पिय तेरे चतुर तू मूरख नारी
कबहुँ न पिय की सेज सँवारी
तैं बौरी बौरापन कीन्हो
भर-जोबन पिय अपन न चीन्हो
जाग देख पिय सेज न तेरे
तोहि छाँड़ी उठि गए सबेरे
कहैं 'कबीर' सोई धुन जागै
शब्द-बान उर अंतर लागै
जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै