कब दिन हो गया कब रात हो गई
हुई माँ किरपा क्या बात हो गई,
क्या बताऊ मैं भगतो मेरे हाल का
मेरे भरती भंडारे मेरी कालका
मैं गिरता रहा मा उठाती रही फर्ज माँ होने का माँ निभाती रही
जब से आया मैं दर हाथ है उसका सिर हर मुसीबत से मुझको बचा ती रही
रस्ता बदला बुरे वक़्त की चाल का
मेरे भरती भंडारे मेरी कालका
माँगा कुछ भी नही पर माँ देती रही खाली झोली मेरी रोज भरती रही
केह न पाऊ मैं कितने एह्सान है आज तक मुझपे जो मैया करती रही
खयाल हर दम रखा अपने इस लाल का
मेरे भरती भंडारे मेरी कालका
कुछ कमी अब नही नही कोई कसर सब कुछ पा गया मैं कलिका माँ के दर
कई जन्म बिता दू चरनो में अगर कर्ज माँ का नही फिर भी सकता उतर
हर जवाब दिया माँ ने मेरे सवाल का
मेरे भरती भंडारे मेरी कालका