पता नहीं जी कौन सा नशा करता है

खाटू जाके देखा जब सावरा , शुद्ध बुध भुल गई सारी,
बस में रहा ना मन बावरा , मिली जो नजर मतवारी,

अरे पता नही जी कौन सा नशा करता है,
सारा संसार इस पे ही मरता है,
जिसपे हो जाये खाटू वाले की दया,
उसकी ही बाबा खाली झोली भरता है,
सभी कहते हैं हारे का सहारा है वो,
सारे जग का उजाला श्याम प्यारा है वो,
देखे आखिया उसे तो , नजर न हटे,
ऐसी छवि उसकी प्यारी .......

वो सावरिया प्यारा , नैनो में है बसा,
जो देखे एक बार , चढ़ जाता है नशा,
जादू नजरो से भक्तो पे ऐसा करे,
फूल सा मुख खिले , कष्ट सारे हरे,
दरश मिले जब श्याम का , मिट जाए सब बेकरारी
पता नही जी कौन सा नशा करता है……….

मेरा बाबा अलबेला , प्यारा उसका मेला
जयकारे बोल रहा , सब भक्तो का रेला,
दिखे बस वो ही वो , ऐसी मस्ती चढ़ी
प्रेम में उसके में , और आगे बढ़ी
मस्ती में झूम झूम नाचते , वहाँ सभी नर नारी
पता नही जी कौन सा नशा करता है……….

कोई दिल्ली से आया , कोई बम्बई से आया
जो भी जहाँ से आया , सबके मन को भाया
सभी कहते है सबसे , निराला है वो
जो भी उसका हुआ , रखवाला है वो
श्याम से हुआ जब सामना , दिल उसपे में तो हारी
पता नही जी कौन सा नशा करता है……….

हम खाटू से आये , करते उसकी बातें
यादों में बाबा की , बीते दिन और राते
दिल की धड़कन में , सांसो में वो है बसा
कभी उतरे नही , चढ़ गया वो नशा
भूलन ने बाबा की मूर्ति , अपने ह्रदय में पधारी
पता नही जी कौन सा नशा करता है……….
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