लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
श्याम का ख़जाना लुट रहा रे,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रै,
श्याम का खजाना लुट रहा रे…
लूट सके तो लूट ले बन्दे,
काहे देरी करता है,
ऐसा मौका फिर ना मिलेगा,
सबकी झोली भरता है,
इसकी शरण में आकर के,
बाबा शरण में आकर के,
जो कुछ भी माँगा मिल गया रै,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रै,
श्याम का खजाना लुट रहा रे…
हाथों हाथ मिलेगा परचा,
ये दरबार निराला है,
घर घर पूजा हो कलयुग में,
भक्तो का रखवाला है,
जिसने भी इनका नाम लिया,
जिसनें भी इनका नाम लिया,
क़िस्मत का ताला खुल गया रै,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रै,
श्याम का खजाना लुट रहा रे…
इसके जैसा इस दुनियाँ मैं,
कोई भी दरबार नहीं,
ऐसा दयालु बनवारी ये,
करता कभी इंकार नहीं,
कौन है ऐसा दुनिया में,
कौन है ऐसा दुनियाँ में,
जिसको बाबा नट गया रै,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रै,
श्याम का खजाना लुट रहा रे……