जनम तेरा बातों ही बीत गयो

जनम तेरा बातों ही बीत गयो, रे तुने कबहू ना कृष्ण कहो |

पाँच बरस को भोलो बालो, अब तो बीस भयो |
मकर पचीसी माया के कारन, देश विदेश गयो ||

तीस बरस की अब मति उपजी, लोभ बढ़े नित नयो |
माया जोड़ी लाख करोड़ी, अजहू न तृप्त भयो ||

वृद्ध भयो तब आलस उपज्यो, कफ नित कंठ नयो |
साधू संगति कबहू न किन्ही, बिरथा जनम गयो ||

यो जग सब मतलब को लोभी, झूठो ठाठ ठयो |
कहत कबीर समझ मन मूरख, तूं क्यूँ भूल गयो ||
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