आबू पधारू है माँ

आशा भरल दिप जरे के रस्ता हम निहारी,
कहिया एबे माँ दरसन दै ले,
के के शेर सवारी

अहि के आस ये जीवन भैर माँ
आहि के बाट तकै छि
आबू हेमा कोरा उठाबु
हम बेटा आहाँ के कनै छी

बाट सजेने छि। आसन लगेने छी,
आबु पधारु हे माँ,
बैसल छी भोरे स कानै छी ओरे स,
कोरा उठाबु है माँ,
बाट सजेने छी,

सबहक बिपदा आहाँ हरै छी,
हम्मर निवेदन किये नै सुनै छी,
कोन गल्ती स आहाँ रसल छी,
देखु न अम्बे हम कतेक कनै छी,
अहि के पूजलौ अहि स पूछै छी,
आहाँ छोइर जेबे हम कहाँ,
बाट सजेने छी......

महिमा आहाँ के केनै जानइये,
घुइर के आबू माँ बेटा कनइये,
ममता मई आहाँ पाथर ने बनियो,
कटते कोना दिन माँ किछु करियो,
कतेक कनाबै छी किये ने आबै छी,
निसठुर नै बनियो आहाँ,
बाट सजेने छी......

हम नै मँगे छि भरल बखारी,
चाही ने हमरा बंगला आ गाड़ी,
मोन के मंदिर में बॉस करू माँ,
भक्त क पूरन आस करू माँ,
रामेंद्र लिखै ये। प्यासा गबइये,
दरसन देखाबू हे माँ...
बाट सजेने छी आसन लगेने छी,
आबु पधारु हे माँ...

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