जिसने की उपासना निशिदिन

जिसने की उपासना निशिदिन, ज्ञान, ध्यान सत्काम की।
शुद्ध हृदय से, मुक्त कंठ से, जय बोलो श्रीराम की।

भव-भयहारी, जन-हितकारी, ज्योति जलाई ज्ञान की,
प्रेम-प्रीति का बिरवा रोपा, जड़ काटी अभिमान की,
जिसने रक्षा की आजीवन, धर्म-कर्म-ईमान की,
जिसने डाली नींव अलौकिक, भक्ति-शक्ति-बलिदान की,
जिसने छुई न सपने में भी कौड़ी कभी हराम की।
शुद्ध हृदय से, मुक्त कंठ से, जय बोलो श्रीराम की।

दुष्प्रवृत्तियों के घेरे को ध्वस्त किया तप-त्याग से,
रहे सदैव सचेत हृदय से, काम-क्रोध की आग से,
भूले भटके राहगीर को, राह बताई प्रेम से,
जड़-विमूढ़ को गले लगाकर, पाठ पढ़ाया प्रेम से,
दूर हटाई गहन उदासी, गली-गली हर ग्राम की।
शुद्ध हृदय से, मुक्त कंठ से, जय बोलो श्रीराम की।

मर्यादा का कभी उल्लंघन किया नहीं अनजान में,
तन-मन-धन से रहे सदा रत, नवयुग के निर्माण में,
धार मोड़ दी आत्म-शक्ति से, हिंसा के हथियार की,
द्वेष-घृणा के अंगारों पर, प्रेमामृत बौछार की,
परहित में ही लगे रहे नित, फिकर न की धन-धाम की।
शुद्ध हृदय से, मुक्त कंठ से, जय बोलो श्रीराम की।

|Yogesh Tiwary
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