भोलीसी सुरत माथेपे चंदा देखो चमकता जाए
सदा समाधि में है मगन कही भोला नजर ना आए
जब भक्तो को पडे जरुरत खुद को रोक ना पाए
सागर मंथन के अवसर पर शिवजी विष पी जाए
पीकर विष की गगरी भोला नीलकंठ कहलाये
कोई भी मांगे बुंद तो ये सारा सागर दिखलाए
शिव की लीला बडी अलग है कोई समझ ना पाए
भोलीसी सुरत माथेपे चंदा देखो चमकता जाए
सदा समाधि में मगन कही भोला नजर ना आए
जब भक्तो को को पडे जरुरत खुद को रोक ना पाए
शिव अकाम गुण के है धाम शिव का ही नाम संयम
शिवलीला तो है अगाध तोडे करमो का बंधन
शिव शक्ति से अलग नहीं है संसार का कण कण
शिव का नाम लिए मन मे चलता हूँ मै तो हरदम
भोलीसी सुरत माथेपे चंदा देखो चमकता जाए
सदा समाधि में मगन कही भोला नजर ना आए
जब भक्तोको को पडे जरुरत खुद को रोक ना पाए