मेरी बांह पकड़ लो एक वार,
हरि एक वार प्रभु एक वार ॥
यह जग्ग अति गहरा सागर है,
सिर धरी पाप की गागर है ॥
कुछ हल्का करदो इसका भार,
हरि एक वार प्रभु एक वार
एक जाल विछा मोह माया का,
एक धोखा कंचन काया का ॥
मेरा करदो मुक्त विचार,
हरि एक वार प्रभु एक वार
है कठिन डगर मुश्किल चलना,
बलहीन को बल दे दो अपना ॥
कर जाऊं भव मैं पार पार,
हरि एक वार बस एक वार
मैं तो हार गया अपने बल से,
मेरे दोस्त बचाओ जग्ग छ्ल से ॥
सो वार नहीं बस एक वार ॥।,
हरि एक वार प्रभु एक वार