मत जा रे सांवरिया तू मथुरा तेरी राधा रो रो पुकारे
तुम ही हो मेरी सांझ सवेरे तेरी राधा रो रो पुकारे
ये बंसी वट और ये कुञ्ज गलियां
सुना है वृंदावन ये तुझ बिन कन्हिया
आके निधि वन में रास रचा रे
तेरे कदम भी न अब लगते प्यारे
मत जा रे सांवरिया तू मथुरा तेरी राधा रो रो पुकारे
ओ ना हम जियेगे न तुम जी सको गे
ये खुशियों के मोसम न फिर मिल सकेगे
मत ना ऐसे तू नजरे चुरा रे
आजा यमुना पे गईआ चराए
मत जा रे सांवरिया तू मथुरा तेरी राधा रो रो पुकारे
ओ गोविन्द गिरधर मोहन छलीया
जब जाना ही है तो फिर पकड़ो क्यों बहिया
हनी भी अब तो कैसे जिए रे
तेरे दुरी से मीठा तो विष रे
मत जा रे सांवरिया तू मथुरा तेरी राधा रो रो पुकारे