देखे री हरि नंगमनंगा ..-2 जलसूत भूषन अंग विराजत, बसन हीन छवि उठत तरंगा। देखे री हरि नंगमनंगा...2 अंग अंग प्रति अमित माधुरी, निरखि लजित रति कोटि अनंगा। देखे री हरि नंगमनंगा...-2