लाखों महिफिल जहां में यूँ तो,
तेरी महफ़िल सी मेहिफिल नहीं है।
स्वर्ग सम्राट हो या हो चाकर,
तेरे दर पे है दर्जा बराबर।
तेरी हस्ती को हो जिसने जाना,
कोई आलम में आखिर नहीं है॥
दरबदर खा के ठोकर जो थक कर,
आ गया गर कोई तेरे दर पर।
तूने नज़रों से जो रस पिलाया,
वो बताने के काबिल नहीं है॥
जीते मरते जो तेरी लगन में,
जलते रहते भी रहते अगन में।
है भरोसा तेरा हे मुरारी,
तू दयालु है कातिल नहीं है॥
तेरा रस्ता लगा चस्का जिसको,
लगता बैकुण्ठ फीका सा उसको।
डूब कर कोई बहार ना आया,
इस में भवरे है साहिल नहीं है॥
कर्म है उनकी निष्काम सेवा,
धर्म है उनकी इच्छा में इच्छा।
सुम दो इनके हाथों में डोरी,
यह ‘कृपालु’ हैं तंग दिल नहीं हैं॥