सुनो रघुनाथ

सुनो रघुनाथ तुमको पार, अब कैसे कराऊ  मैं....
चढ़ा के नाव मे तुम्हे, नाव क्यूँ अपनी गवाऊँ मैं,
हजारो हैं यहाँ केवट, हजारो नाव जल में है,
बुला लो दूसरा केवट नहीं अब नाव चलाऊँ मैं,
सुनो रघुनाथ तुमको पार......

उड़ी चरणों की रज कण से, शिला पाषाण की भारी
अगर जो उड़ गई नैया, कहो कैसे बचाऊँ मैं
अगर दो चार होती तो भले ही एक गंवा देता
रहे ना एक भी नौका, कमा के कहाँ से खाऊंगा
चढ़ा के नाव मे तुम्हे......

करुंगा पार मैं तुमको, शर्त मंजूर कर लो तुम
चरण पहले पखारुंगा, तुम्हे पीछे बिठाऊंगा
प्रभु प्रसाद मिले मुझको, मेरी विनती यही तुमसे
इसी नैया की रोजी से पालूँ परिवार मैं अपना
चढ़ा के नाव मे तुम्हे......

करुंगा पार मैं तुमको, हमें भी पार लगा देना,
मेरे रघुनाथ मेरी कश्ती तुम्हारे ही हवाले है,
सुनो रघुनाथ तुमको पार, अब कैसे कराऊ  मैं,
चढ़ा के नाव मे तुम्हे, नाव क्यूँ अपनी गवाऊँ मैं......
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